Moral stories in hindi : रात के आठ बज रहे थे घर पहुंचते ही कौशल्या देवी को लेटा हुआ देखकर अविनाश परेशान होने लगा “क्या हुआ अम्मा!तुम लेटी क्यूं हो, तबियत ठीक है”अविनाश चिन्तित होते हुए बोला।”ठीक है बेटा!बस पैर में मोच आ गई है” कौशल्या देवी कराहती हुई बोली।”मौसी! डाक्टर को दिखाया कि नहीं?
“अविनाश माया को देखते हुए बोला।”दिखाया है बेटा! दो चार दिन दीदी को चलने फिरने के लिए मना किया है” माया परेशान होती हुई बोली। “ठीक है अम्मा तुम आराम क्यों कोई जरूरत नहीं चलने फिरने की” अविनाश कौशल्या देवी के पैर दबाते हुए बोला।”ठीक है बेटा! मैं कहा चल फिर रही हूं,मगर जब माया चली जाती है तो मैं अकेली रहती हूं,
बस यही चिंता है”कौशल्या देवी उदास होते हुए बोली।”ठीक है अम्मा मैं एक हफ्ते की छुट्टी ले लेता हूं” अविनाश कौशल्या देवी को पकड़ते हुए बोला।”तूं क्यूं छुट्टी लेता है मैं ठीक ही तो हूं,कुछ दिन के लिए हमारी होने वाली बहूं को यहा दिन में बुला ले,दिन भर रहेगी मेरे पास शाम को उसे घर छोड़ देना
” कौशल्या देवी अविनाश को दुलारते हुए बोली।”अरे हां अम्मा!यह तो मैंने सोचा ही नही, वैसे भी गीता दिन में फ्री रहती है, मैं उसके पापा से बात करके कल से उसे रोज दिन में तुम्हारे पास छोड़ दिया करुंगा” अविनाश खुश होते हुए बोला।”लल्ला तुम कल से बहूरिया को दिन में दीदी के पास छोड़ देना जिससे मेरी भी चिंता कम हो जाएगी” माया कौशल्या देवी की ओर देखते हुए मुस्कुराते हुए बोली।” ठीक है मौसी!कहकर अविनाश अपने कमरे में चला गया। कौशल्या देवी और माया एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रही थी।
दूसरे दिन से सुबह गीता को अपने घर छोड़कर ही अविनाश अपने आफिस जाता था,गीता बहुत खुश थी कि उसे शादी से पहले ही सब कुछ समझने का पूरा मौका मिल गया था, कौशल्या देवी और माया गीता की हर हरकत को अंजान बनकर उस पर नज़र गड़ाए हुए थी,माया रोज दिन में सारा काम करके चली जाती थी,
गीता कुछ न करके घर की हर चीज पर ताक-झांक करती टीवी देखतीं और कौशल्या देवी से इधर-उधर की बातें पूछकर अपना दिन व्यतीत करती थी, उनके पास वह दस मिनट से ज्यादा बैठती तक नहीं थी,खाना पीना मौज उड़ाना और अविनाश के आगे मीठी-मीठी बातें करना जिसमें वह परांगत थी,वही कर रही थी,
“मम्मी आपको कुछ चाहिए तो नहीं” गीता कौशल्या देवी के पास बैठते हुए बोली।”बेटी मुझे कुछ नहीं चाहिए मगर आज माया को पैसा देना है, उसे काम है” कौशल्या देवी गीता से स्नेह जताती हुई बोली।”तो दें दीजिए, इसमें चिन्ता की क्या बात है” गीता हैरान होते हुए बोली।”बेटी! मैं उठकर अलमारी खोल सकती हूं क्या
” ओह मम्मी!यह तो मैंने सोचा ही नहीं था” गीता कौशल्या देवी को देखते हुए बोली।”बेटी यह ले चाभी, और अलमारी से दस हजार रुपए निकालकर रख ले अभी माया आएगी तो उसे दें देना” कौशल्या देवी गीता को अलमारी की चाभी पकड़ाती हुई बोली।अलमारी की चाभी अपने हाथ में लेकर गीता खुशी से झूमने लगी,
उसकी आंखों में चमक साफ दिखाई दे रही थी, कौशल्या देवी चुपचाप उसके बदलते भावों को महसूस कर रही थी। “ठीक है मम्मी मैं अभी दस हजार रूपए निकाल लेती हूं,माया आंटी के लिए” गीता कौशल्या देवी की ओर देखते हुए बोली। “बेटी! तुमको भी कुछ पैसे चाहिए हो तो ले लेना, आखिर कल को तुम्हीं को यह सब करना है” कौशल्या देवी गीता को देखते हुए बोली।”जैसा आप कहें मम्मी! गीता अलमारी की ओर बढ़ गई।
अलमारी में नोटों की गड्डियों को देखकर गीता हैरान होने लगी, नोटों के बगल रखें छोटे बक्सों को खोलते ही उसके चेहरे की रंगत बदलने लगी लाखों के जेवरों को उन बक्सों में देखकर उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था,”कितना माला रखा है इस बुढ़िया के पास” वह बुदबुदाईं,वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि अलमारी में पूरा खजाना है, उसने जल्दी-जल्दी सौ की गड्डी निकाली और अलमारी को बंद करके चाभी कौशल्या देवी को दे दिया। माया आ चुकी थी, उसे दस हजार रूपए देकर गीता अविनाश के साथ अपने घर चली गई।
दूसरे दिन सुबह गीता खुद ही अविनाश के घर पहुंच गई, उसके मन-मस्तिष्क में उथल-पुथल हो रही थी, अविनाश आफिस जा चुका था,माया भी अपने सारे काम निपटा कर चली गई, घर पर केवल कौशल्या देवी और गीता ही मौजूद थी,”बेटी जरा मुझे बाथरूम तक छोड़ दें”कौशल्या देवी गीता को पास बुलाते हुए बोली।
गीता को तो जैसे इसी बात का ही इंतजार था,वह कौशल्या देवी को बाथरूम में छोड़कर जल्दी से वापस आ गई,तकिया के नीचे से अलमारी की चाबी निकाल कर उसने पैसा ज़ेवर सब समेटकर एक बैग में रख दिए, और अलमारी को बंद करके चाभी तकिया के नीचे रख दिया,और अपने पिता शैलेन्द्र को चुपचाप फोन मिलाकर कुछ कहा,और बाथरूम की ओर बढ़ गई। कौशल्या देवी गीता की हर हरकत को चुपचाप देख रही थी।
परख अंतिम भाग
परख भाग 3
स्वरचित
माता प्रसाद दुबे