बहन या मुफ़्त की सहायिका – रश्मि प्रकाश 

  “प्यार के दो शब्दों के लिए तरस गई थी वह। बचपन यूँ ही तानों में गुजर गया और अब जाकर शायद उसकी ज़िन्दगी में प्यार के रस घोलने वाला मिल गया है….आपको क्या लगता है….. चारू की क़िस्मत में भगवान ने कुछ तो अच्छा लिखा ही होगा… है ना!” गुंजन पति अनुराग से बोली। … Read more

 हक़ – विनय कुमार मिश्रा

मैंने ताई के घर की तरफ देखा। ताई नहीं थी।मैंने चैन की सांस ली। जब कभी मुझे बाहर निकलते देखती हैं।उन्हें कुछ ना कुछ बाजार से मंगाना ही होता है।कभी सब्जी, कभी दवा तो कभी दूध।तंग आ गया हूँ उनसे।जी तो चाहता है कभी सुना दूं कि खुद के बेटे को बाहर भेज दिया और … Read more

प्यार को जताना भी आना चाहिए – के कामेश्वरी

सुजाता आजकल उदास रहती है क्यों यह घर में कोई भी नहीं जान सका था । हमेशा कुछ न कुछ सोचती ही रहती है । पहले तो एक पल भी चुप नहीं रहती थी ।परिवार के लोग उनके सोने का इंतज़ार करते थे ,क्योंकि वह तब ही चुप रहतीं थी । अब उनके बोल सुनने … Read more

किन्नरों का नेग – प्रियंका मुदगिल

कुसुम, जोकि किन्नरों की टोली की मुखिया थी,सब लोग उसे कुसुमदीदी के नाम से बुलाते थे। हर किसी के दुख दर्द को अच्छे से समझती थी वो… उसने घर आते ही  आवाज दी, “”सब तैयार हो गए हैं ना….  अपने-अपने ढोलक और बाजे लेकर….और यह पुष्पा कहाँ गयी.. उसके डांस के बिना तो मंडली का … Read more

हमेशा बड़े ही सही नहीं होते –  मनीषा भरतीया

आनंदी जी स्वभाव से बहुत कड़क लेकिन अंदर से बिल्कुल मोम की तरह नरम| उनकी चाल-ढाल बोलने का अंदाज देखकर ऐसा प्रतीत होता जैसे किसी हवेली की ठकुराइन हो। एक छोटी-सी कोठरी में अपने बहु-बेटे, पोता और दो पोतीयों के साथ रहती थी। बेटा काम बाहर करता था तो महीने में दो बार ही घर … Read more

देवी-आराधना – रश्मि स्थापक

कॉलेज से आने के बाद निहारिका अपने काम फटाफट निपटा कर कॉलोनी के गरबा मंडलों मैं घूमने निकल पड़ी। इस बार शहर की नई बसी इन चारों कालोनियों के अपने-अपने पांडाल सजे हुए थे। एक महीने पहले से ही चारों पांडाल वाले जोर-शोर से तैयारियों में लगे हुए थे। कार्यकर्ता कॉलोनी के छोटे-बड़े बच्चे थे … Read more

जीने की कला – आभा अदीब राज़दान

” दादा जी आप क्यों बाज़ार चले गए , आप को रात में तेज़ ज्वर था और घुंटनों में भी इतना दर्द रहता है ,मुझे बहुत चिंता होती है आपकी । लेकिन आप कभी भी मेरी बात नहीं सुनते हैं ।” पोतबहू विनती बोली । ” बहू मैं बिलकुल ठीक हूँ न अब मुझे बुख़ार … Read more

छोटी बहन – मधु शुक्ला .

यह कहानी हमारी परिचिता के अनुभव के आधार पर निर्मित है। कई बार जिंदगी में ऐसी घटनाएं हो जातीं हैं। जो हमारी विचारधारा, जीवन शैली को बदल देतीं हैं। अनामिका के पड़ोस में रहने वाली तलाकशुदा मीता के बारे में अनुज अच्छी राय नहीं रखता था। इसलिये वह अपनी पत्नी नीलिमा को उससे दूर रहने … Read more

“रिश्ता” – कुमुद चतुर्वेदी

अस्ताचलगामी सूर्य की ओर मुँह किये एक आदमी समुद्र के किनारे दोंनों हाथ उठाये खड़ा था मानो ताजी हवा ले रहा हो कि अचानक वह पानी में कूद गया और डूबने लगा। कुछ लोग जो तैरना जानते थे एकदम पानी में कूद पड़े और थोड़ी देर में ही उस व्यक्ति को कंधे पर लादे बाहर … Read more

वृन्दा सब्जी घर – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

वृन्दा का छोटा सा परिवार था, परिवार मे दस साल की बेटी और छः साल का एक बेटा था। पति एक हाउसिंग सोसायटी मे गार्ड थे । वृन्दा बहुत ही खुशमिजाज औरत थी, छोटी-छोटी चीजो मे खुशियां ढूंढ लेती थी….या यूं कहिए खुश रहना उसकी फिदरत थी। पर शायद होनी को वृन्दा का खुश रहना … Read more

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