सविता जी बेटा पाने की चाह में पांच बेटियों की मां बन जाती हैं..फिर भी बेटा एक भी नहीं होता” इस बात से हमेशा उदास और परेशान सी रहने लगती! यहां तक की उनके आस -पड़ोस के लोग उनके परिवार वाले भी उन्हें ताना देने शुरू कर देते हैं !!
बेचारी सविता और उसके पति श्याम जी का क्या होगा..?” दोनों का एक भी बेटा नहीं”” पांच -पांच बेटियां हैं..पांचों बेटियों की शादी करते- करते इन लोगों की हालात खराब हो जाएगी”” बुढ़ापे में जब “बेटे” की सहारे की जरूरत पड़ेगी तब इन्हीं सहारा देने के लिए कोई नहीं आएगा.. कहकर हमेशा सविता जी का दिल को और दु:खाया जाने लगा कविता जी का मन बहुत बेचैन और विचलित रहने लगा..!!
सविता जी एक बहुत ही संस्कारी और भली औरत थीं !
शादी के बाद अपने पति के साथ सुख -पूर्वक अपना जीवन बिता रही थीं, ना कभी किसी चीज की कमी हुई और ना कभी कोई परेशानी आई ,,बस एक परेशानी को छोड़कर की उनकी जिंदगी में एक बेटा”” नहीं आ पाया.. इस बात से उनके पति भी कभी-कभी दु:खी हो जाते थे,लोगों की बात सुनकर फिर भी उन्हें अपनी पांचों बेटियों पर बड़ा गर्व था गर्व से कहते थे.. क्या हुआ ?”हमारा बेटा नहीं है तो “”बेटियां क्या बेटों से कुछ कम होती हैूं.?” कहकर सविता जी को अपने गले लगा लिया करते थे!
अपने पति की बात सुनकर कविता जी का भी दिल खुश हो जाता था; चलो आस-पड़ोस के लोग क्या कहते हैं..? क्या नहीं कहते ? उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मेरे पति अपनी बेटियों से बहुत खुश है तो हमें भी खुश रहना चाहिए..!!
समय के साथ बेटियां बड़ी होती गईं ,,बेटियों की हर ख्वाहिश “बेटों” की तरह ही पूरी किया जाने लगा देखते देखते पांचों बेटियों की धीरे-धीरे शादी हो जाती है..!!
कुछ दिन तो सविता जी और उनके पति को कोई एहसास नहीं हुआ.. हां” बेटियों की कमी जरूर खलती .. रह –रहकर उनकी याद आ जाती कभी-कभी मन में या ख्याल भी जरूर आता था काश हमारा एक “बेटा” होता जो जिंदगी भर हम दोनों के साथ होता बेटियों की तरह शादी के बाद दूसरे घर जाकर नहीं बस जाता..!
खैर, उनकी बेटियां बहुत ही अच्छी और समझदार थीं पांचों में से जिसे भी समय मिलता अपने माता-पिता के पास मिलने चले आती थीं.. थोड़ा समय बिता कर फिर वापस अपने घर चले जाते हैं जब बेटियां घर वापस आती थीं तो सविता जी और उनके पति की आंखों में खुशी की चमक साफ-साफ दिखती था.. वहीं जाते- जाते आंसू और उदासी चेहरे पर छा जाती थी..!!
समय बीतता गया फिर ना जाने अचानक क्यों..?” सविता जी बहुत बीमार रहने लगती हैं, डॉक्टर भी जवाब दे देते हैं, जैसे तैसे उनके पति उनका ख्याल रखते जितना हो सकता उतना उसके लिए करते समय के साथ उनकी हालत बिगड़ती गई और अंत में इस दुनिया से विदा हो जाती हैं..!!
श्याम जी अब उस घर में बिल्कुल अकेले हो जाते हैं समय-समय पर पिता का सहारा बनने के लिए एक ना एक बेटी आ जाया करती,, शरीर बुड्ढा हो चला था और मन भी उदास हो गया था !
सविता जी के जाने के बाद ऐसा लग रहा था, जैसे श्याम जी की जिंदगी ही सूनी हो गई हो” रह रह कर अपनी पत्नी को याद करते ..कभी-कभी यह भी एहसास होता “काश एक बेटा होता” तो हमारा अकेलापन और उदासी कुछ पल के लिए ही सही कम हो जाता.. बहु- बेटे और उनके छोटे-छोटे बच्चे होते, जिनके साथ मैं भी थोड़ा समय बिता लेता ..? काश एक बेटा होता.. इस बात का मलाल आज भी श्याम जी के मन में है..लेकिन,, फिर धीरे से अपने मन को समझा लिया करते”” नहीं.. नहीं हमें जिंदगी बिताने के लिए “”बेटे की जरूरत क्यों पड़ गई??” “हमारी बेटियां क्या बेटों से कम हैं” जो बारी – बारी से हमारा ख्याल रखने हमसे मिलने आ जाया करती हैं ..यह बात अलग है.. कि पूरा समय हमारे साथ नहीं रह पाती”” अपना घर -परिवार भी देखना होता है.. मैं बहुत खुश हूं .. सविता” मैं बहुत खुश हूं, मेरी बेटियां बेटों से कम नहीं””खुश रहने के लिए या फिर बुढ़ापा काटने के लिए..हमें “बेटा” हो यह तो जरूरी नहीं “बेटियां” भी हमारा सहारा बनकर हर पल साथ खड़ा रहती है..आज जरूरत है तो.. अपनी-अपनी सोच को बदलने की, हमारा नजरिया बदलने का “बेटा” और “बेटी” के प्रति कि बेटा होता तो यह होता, बेटा होता तो वह होता,, ऐसा कुछ नहीं होता है!!
हद तो तब हो जाती जब रिश्तेदार या फिर आस पड़ोस के लोग उनसे मिलने आते वह भी यही बात कहते “काश इनका एक बेटा होता”.तो आज इनकी जिंदगी इतनी सूनी नहीं होती..!!
श्याम जी बातें तो सबकी सुन लेते थे.. थोड़ी देर चुप रह कर उनको मुंह पर जवाब भी दे दिया करते थे..! अरे” दोस्तों जिंदगी जीने के लिए या जिंदगी में खुश रहने के लिए यह तो जरूरी नहीं कि हमारा बेटा हो क्या हुआ मेरे पास बेटा नह है तो.?” हमारी””बेटियां क्या बेटा से कुछ कम हैं””?..इतना सुनते ही सारे लोग नि:शब्द हो जाते”मन -ही -मन यही सोचते सच तो कह रहे हैं ..”श्याम जी” हमारी यह दकियानूसी सोच ही तो है की.. हमें जिंदगी जीने के लिए आगे चलकर एक बेटे की जरूरत पड़ेगी”” लेकिन ऐसा कुछ नहीं”” बेटे भी कभी-कभी अपने माता-पिता को बहुत जलील करते हैं”” उनका जीना मुश्किल कर देते हैं”” घर से भी बेघर कर देते हैं, फिर भी हम “बेटा” और “बेटी” का रट लगाए बैठे रहते हैं! ऐसा कुछ नहीं होता बेटा-बेटी सब बराबर है!!”
दोस्तों.. यह सच है,कि जिंदगी जीने के लिए बेटा हो या “बेटी” खुशी-खुशी उसे एक्सेप्ट करना चाहिए बेटा पाने की चाह में हमें “बेटियों” को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए..क्योंकि आजकल बेटियां भी बेटों से कुछ कम नहीं होती” समय आने पर हमारी बेटियां भी “बेटा” बनकर हमारा साथ निभाती है..हमारा हाथ पकड़ कर हमारे साथ खड़ा हो जाती है..!!
पूनम गुप्ता***** स्वरचित कहानी