बहुत समय पहले एक राजा था जो अपने प्रजा के भलाई के कार्यो मैं इतना लगा रहता था कि प्रजा उसकी प्रशंसा करे नहीं थकती थी। एक दिन राजा रात में सोया हुआ था तो राजा के मन में ख्याल आया कि क्यों न रूप बदल कर प्रजा मैं घूमने जाऊं और यह पता करूं कि सच में सभी लोग मेरी प्रशंसा करते हैं या कुछ लोग मेरी बुराई भी करते हैं।
अगले दिन सुबह राजा ने एक फेरीवाले का भेष बनाकर गांव गांव घूमकर सामान बेचने लगा ताकि यह पता कर सके उसकी कोई बुराई तो नहीं करता। एक गांव की गली से गुजर रहा था तभी उसने सुनाई दिया एक घर में कुछ स्त्रियां राजा की बुराई कर रही थी।
राजा वहीं से सीधे अपने महल में लौट आया और इस चिंता में डूब गया कि मैं प्रजा की भलाई के लिए इतना सारा काम करता हूं फिर भी प्रजा मेरी बुराई करती है अब मैं कुछ भी नहीं करूंगा इस प्रजा के लिए। उस दिन के बाद से राजा के व्यवहार में परिवर्तन आ गया और वह अपनी प्रजा पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और उस दिन से जो पहले लगान लिया जाता था उस दिन से वह लगान दुगना कर दिया।
राजा के इस व्यवहार से सभी लोग परेशान हो गए राजा के सभी मंत्री भी यह देख कर हैरान हो गए कल तक तो राजा इतने अच्छे थे आज आखिर क्या हो गया। जो सबके साथ ऐसा कठोर व्यवहार करने लगे. उस दिन से राजा अपनी पत्नी से भी सही से अब बात नहीं करता था उसे लगता था कि सब मेरी बुराई करते हैं। अब राजा अपने आप में ही अकेले रहने लगा और काफी तनाव में भी रहने लगा।
रानी राजा को परेशान देखकर बहुत ही चिंतित हो गई यह बात उसने अपने राज्य के प्रमुख मंत्री से बताया। तो मंत्री ने सलाह दिया की महारानी हमारे राज्य में एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा आए हैं आप उनके पास राजा को ले जाएं महात्मा जी से मिलने के बाद शायद महाराज के व्यवहार में कुछ परिवर्तन आए ।
महारानी अगले दिन ही राजा को लेकर महात्मा जी के आश्रम में पहुंच गई और महात्मा जी से सारी बात बताया कि
कि उसका पति एक दिन फेरीवाला का भेष बनाकर अपने राज्य में भ्रमण करने निकले तो कुछ स्त्रियों से अपनी बुराई करते हुए सुन लिए इस वजह से उस दिन के बाद यह नकारात्मक हो गए हैं और हर चीज में या इनको अब बुराई नजर आती है इन को ऐसा लगता है कि हर कोई उनकी बुराई करता है। महात्मा जी आप ही अब कुछ उपाय बताइए।
महात्मा जी बोले ” बेटी रात भर यहाँ तुम अपने पति यानी महाराज को मेरे आश्रम में ही छोड़कर चले जाओ”
महारानी ने ऐसा ही किया और वह वापस अपनी महल लौट गई।
खाना खिलाने के बाद महात्मा जी ने राजा को बोला महाराज चलिए अब सो जाते हैं। राजा ने महात्मा जी से बोला कि आपने मुझे किसलिए यहां पर रोका है वह तो बात आपने बताया नहीं। महात्मा जी बोले कि अभी आप सो जाइए महाराज कल सुबह मैं आपको बताऊंगा। राजा जैसे ही सोने को हुआ बाहर से मेंढक टर्र टर्र आवाज आने शुरू हो गई। राजा करवट करवट बदलता रहा लेकिन आवाज की वजह से उसको नींद नहीं आ रही थी उसने महाराज से बोला कि महाराज आपको नींद कैसे आ जाती है बाहर तो मेढक कितना टर्र टर्र की आवाज करते हैं मेरी तो नींद ही नहीं लगेगी यहां पर ऐसा लग रहा है कि बाहर हजारों मेंढक हो।
आज रात में कैसे भी करके बिता देता हूं लेकिन कल सुबह ही मैं अपने सैनिकों से इन सारे मेंढक को पकड़कर मरवा दूंगा। सुबह होते ही राजा ने अपने सैनिकों को बुलाकर उस तालाब से मेंढक को पकड़कर मारने के आदेश दे दिए। सैनिकों ने जब पूरे तालाब में जाल डाला तो सिर्फ 40-50 मेंढक की निकले। राजा ने अपने सैनिकों से कहा क्या सिर्फ 40 50 मेढक है पूरे तालाब में। सैनिकों ने जवाब दिया हमने आज पूरे तालाब को छान मारा इतने ही मेंढक निकले। राजा बोला रात में तो ऐसा लग रहा था कि हजारों मेंढक होंगे।
राजा की बात महात्मा जी सुन रहे थे। अब महात्मा जी ने अब महात्मा जी ने राजा को बुलाया और बोला महाराज यही चीज मैं आपको बताना चाह रहा था कि बाहर जो लोग आपकी बुराई करते हैं वह सिर्फ नाम मात्र के ही हैं बाकी सारी प्रजा आपकी प्रशंसा करती है आप थोड़े से नकारात्मक लोगों के पीछे मत भागी है आप अपना काम करते जाइए यही एक राजा का धर्म होता है।
उस दिन से राजा को यह बात समझ आ गई और अपनी प्रजा को फिर से पहले से ज्यादा भलाई के कार्यो में जुट गया।
दोस्तों हमारे साथ भी अपनी जिंदगी में ऐसा ही होता है हम कोई भी काम करने चलते हैं तो सबसे पहले यही सोचते हैं कोई हमारी बुराई तो नहीं कर रहा है। जबकि यह भूल कर हमें अपनी अच्छाई क्यों करते रहना चाहिए।