“मनहूसियत” (भाग दो) – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 

माँ,तुमने तो मेरे मूंह की बात कह डाली। मैं तो सोच रहा था पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कहने की। आखिर किस तरह और कैसे कहता…समझ नहीं आ रहा था। चलो अच्छा हुआ तुमने मेरे मन की बात खुद ही कह दिया। छोटी को देख रिया भी खुश हो जायेगी।  मैं तीन टिकट भेज दूँगा। अभी ऑफिस के लिए लेट हो रहा हूं। ओके कह कर फोन काट दिया।

अपने आप में खोई छोटी पहले तो जाने के लिए तैयार नहीं हुईं लेकिन माँ के मनुहार और भाई की खुशी के लिए भारी मन से हामी भर दिया उसने ।




दो दिन बाद का टिकट था। माँ- पिताजी चाहते थे कि जगह परिवर्तन होने से और माहौल बदलने से उसका मन बदलेगा। थोड़ी खुशियां उसके जीने का सहारा बन जाएगी। उसकी पतझड़ बनी जिंदगी में फिर से नई कोपलें फुटेगी। सबने जाने की तैयारियां पूरी कर ली।नियत समय पर सब स्टेशन  पहुंचे। माँ पिताजी अपने आने वाले पोते  या पोती के लिए काफी खुश थे।

तीनों लोग दो दिन के सफर के बाद बेटे के पास मुंबई पहुँच गए। माँ ने बेटे को और भाई ने बहन को गले से लगा लिया ।छोटी जब भाभी के गले मिली तो उसके सीने में दबा दर्द फट पड़ा। भाभी बहुत अच्छी और छोटी की पक्की सहेली थीं। उसने छोटी को अपनी छोटी बहन की तरह पुचकारते हुए ढाढस बंधाया। फिर धीरे-धीरे छोटी अपना गम भूलने लगी और भाभी के साथ घुलमिल गई।

 सुबह -सुबह माँ बैठी चाय पी रही थीं तभी बेटा आकर उनकी गोद में सिर रखकर लेट गया। माँ ने घबड़ाते हुए कहा-” क्या हुआ बेटा? “

“कुछ नहीं माँ…बड़ा हो गया हूँ तो क्या हुआ मेरा भी हक है कि मैं तुम्हारे गोद में लेट जाऊँ । है न!”

“सब जोड़ से हँस पड़े। माँ …रिया की मम्मी आना चाहती हैं रिया से मिलने। यह तो बहुत अच्छी बात है बुला लो उन्हें हम भी मिल लेंगे उनसे। “

हाँ माँ,रिया की इच्छा है कि क्यों न हम एक छोटी सी पार्टी रखें गोद भराई की और उसी में सबको बुला लिया जाय। माँ डर गईं क्योंकि अभी -अभी उनलोगों ने बेटी की गोद भराई की तैयारी की थी जो अधूरी रह गई थी। फिर भी कुछ बोलीं नहीं क्योंकि बेटे बहू की खुशी का सवाल था। उन्होंने सशंकित मन से हामी भर दी। बेटे ने धूमधाम से सारी तैयारियाँ पूरी कर ली। छोटी ने भी कभी जाहिर नहीं होने दी कि उसके दिल पर क्या गुजर रही है। उसने अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान लिए भाग -भाग कर भाभी को सजाती रही। शाम होते ही पार्टी शुरू हो गई। सारा घर मेहमानों से भरा हुआ था। बीच हॉल में सजी-धजी रिया को बैठाने के लिए छोटी दौड़ कर कमरे में उसे लेने गई।

अंदर रिया की माँ अपने रिश्तेदारों से बोले जा रहीं थीं-” क्या जरुरी था दामाद जी को अपनी बहन को यहां बुलाने का ! हमें तो डर लग रहा है कि कहीं उसकी मनहूसियत तुम्हारे बच्चे पर न पड़ जाए। “

छोटी आगे के शब्द सुन न सकी ।जिस दर्द को उसने अपने भाई और भाभी की खुशी के लिए दिल के किसी कोने में दफ्न कर दिया था उसे भाभी की माँ ने अपने घटिया शब्दों से कुरेद दिया था।

देर होते देख माँ के कहने पर भाई पीछे से देखने गया। वहां जाकर देखा तो छोटी कमरे के बाहर सीढियों पर अचेत पड़ी थी। वह जोर से चिल्लाया…छोटी… मेरी बहन …क्या हुआ तुझे…।

देर होते देख माँ के कहने पर भाई पीछे से देखने गया। वहां जाकर देखा तो छोटी कमरे के बाहर सीढियों पर बेसुध पड़ी थी। वह जोर से चिल्लाया…छोटी… मेरी बहन …क्या हुआ तुझे…। 

बेटे की चिल्लाने की आवाज सुनकर माँ -पिताजी  सहित पार्टी में शामिल सारे लोग आवाज की दिशा में भागे।  आसपास के फ्लैट में रहने वाले लोग भी इकठ्ठा हो गये। बेटी को नीचे गिरे देख माँ सन्न रह गईं। और अपना होश खोकर दूसरी तरफ गिर पड़ी। 

पिताजी की तो आघात लगने जैसी स्थिति हो गई थी। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं खोया और पहले बेटी की तरफ लपके उसका हाथ पकड़ नाड़ी चेक करने लगे। उनकी आँखों से झड़- झड़ आंसु बह रहे थे। 

पिताजी ने होम्योपैथी की भी पढाई की थी और रिटायरमेंट के बाद घर पर ही अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। एकाएक जोड़ से  बोले–” बिट्टू जल्दी पानी लाओ नाड़ी चल रही है छोटी की।” 

बगल में बेहोश पड़ी माँ को होश में लाने के लिए पानी का बोतल लिये कोई गेस्ट खड़ा था उसके हाथ से लगभग छीनते हुए भाई ने बहन के चेहरे पर पानी उझल दिया। थोड़ी सी हलचल होती दिखी तो पिताजी चिल्लाए बिट्टू गाड़ी निकालो छोटी को हॉस्पीटल ले चलो। उसे कुछ नहीं होगा वह ठीक हो जाएगी.. 

उधर माँ को होश आ गया था। रिया और उसके परिवार वाले  माँ को बेड पर लिटा सेवा में लगे हुए थे। माँ बेचारी उनकी करतूतों से अनजान उनके हाथ जोड़ -जोड़ कर उनके एहसान तले दबे जा रहीं थीं। धीरे-धीरे सभी बुलाये गये मेहमान अपने लाये गिफ्ट को सामने रखे बड़े से केक के पास रखकर जा रहे थे। कुछ जो बहुत नजदीकी दोस्त थे वो बिट्टू के साथ हॉस्पीटल चले गए थे। 




रिया की मम्मी ने माँ के लिए सूप बनाया और प्यार से उन्हें  तकिये के सहारे उठाकर बैठाया और पीने के लिए दबाव डालने लगीं। माँ ने खाने से साफ मना कर दिया उन्हें अपनी बेटी की चिंता लगी हुई थी। वो बार- बार हॉस्पीटल से कोई खबर आया है कि नहीं यही सबसे पूछ रही थीं। 

अचानक रिया दौड़ कर कमरे से बाहर आई और माँ को दोनों हाथों से कसकर पकड़कर  बोली-” माँ छोटी को होश आ गया है वह बिल्कुल ठीक है । कुछ टेस्ट बाकी है जो हो जाने के बाद कल तक वह घर आ जाएगी ।”

इतना सुनते ही दोनों सास -बहू एक दूसरे को पकड़कर रोने लगीं।  माँ ने हिचकी लेते हुए कहा-“बहू हमारी वजह तुम्हारी खुशियां बर्बाद हो गईं हमें माफ कर देना बेटा।” 

माँ की आँखों को पोंछते हुए बहू ने कहा -” माँ सारा दोष आप अपने ही उपर ले लेंगी क्या?” 

“माँ यह एक हादसा था सो टल गया अब सब ठीक हो जाएगा।” 

सामने की कुर्सी पर बैठी रिया की मम्मी मूंह बनाते हुए बोलीं-”  समधन जी परेशान होने की जरूरत नहीं है । वो कहते हैं न कि’ होइहे वही जो…. राम रची राखा’  अब देखिए कैसे सारी की सारी तैयारी धरि रह गयी। जिन्दगी की सबसे बड़ी खुशी थी जिससे रिया बंचित रह गई । दामाद जी की सारी तैयारियाँ बेकार हो गईं।

है न!” 

रिया ने गुस्से से अपनी मम्मी की तरफ देखा और बोली-” मम्मी क्या फालतू की बात कर रही हैं आप!मेरी खुशियों की पड़ी है आपको….। आपको यह नहीं दिखाई दिया कि यदि छोटी को कुछ हो जाता तो!” 

“अरे !बेटा वही तो कह रही हूँ तुमलोग को जबरदस्ती छोटी को बुलाना ही नहीं चाहिये था जब वह अपने इतने बड़े दुःख से बाहर आई थी।” मम्मी ने एक -एक शब्द चबाते हुए कहा। 

माँ, चुपचाप उनकी जहर जैसी बातों को घोंटने का प्रयास कर रही थीं ।जिस कारण उनकी बाई आँख के कोर से  आंसू टपक रहे थे। 




रिया  अपनी मम्मी की मनसा भांप गई थी सो जल्दी से बोली-” मम्मी मैं माँ के पास बैठती हूँ आप जाकर थोड़ी हेल्प कर दीजिए बाई के साथ मिलकर ।” 

सुबह -सुबह गाड़ी जैसे ही दरवाजे पर आकर रूकी रिया कमरे से निकल कर भागती हुई बाहर जाने लगी। तभी टोकते हुए उसकी मम्मी ने कहा-” कहां दौड़ी जा रही हो रिया? वो लोग अंदर नहीं आयेंगे क्या? देखो तुम्हें कुछ हुआ न तो मैं किसी को माफ नहीं कर पाऊँगी समझी। ” 

“मम्मी क्या बोल रही हैं आप कोई सुनेगा तो क्या कहेगा?” 

“मुझे किसी की चिंता नहीं है बस तुम्हारी चिंता है। ” 

“मम्मी मेरी चिंता छोड़ दीजिये ,किसी को भले ही पता न चले मगर मुझे पता है कि आपके ही शब्द- बाण से यह दर्दनाक घटना हुई है। भगवान ने बचा लिया छोटी को वर्ना मैं कभी माफ नहीं कर पाती आपको ।” 




रिया की मम्मी पैर पटकते हुए कमरे में चली गई।और अपने सामानों को पैक करने लगी। 

सब लोग अंदर आ चुके थे। रिया ने छोटी को सहारा देने के लिए आगे  हाथ बढ़ाया तो वह उससे लिपट कर रो पड़ी और सिसकते हुए कहा -“भाभी मुझे माफ कर दो मेरी मनहूसियत ने आपकी खुशियों  को बर्बाद कर दिया।” 

रिया ने छोटी के मूंह पर अपनी उंगली रख दिया और कहा-” छोटी मेरी प्यारी ननद ,मेरी बेस्ट बहन तुमसे बड़ी कोई खुशी नहीं है मेरे लिए बल्कि मैं माफ़ी मांगती हूँ तुमसे अपनी माँ की तरफ से । रिया की आँखों से टप -टप ग्लानि के आंसू  टपक रहे थे। उन दोनों का प्यार देख माँ और पिताजी कुछ समझ तो नहीं पाये लेकिन उनकी भी आंखें भींग गईं। 

थोड़ी देर में सबने देखा रिया की मम्मी और भाई-बहन अपने सामानों के साथ बाहर निकल कर खड़े हो गए। पिताजी ने टोका आप…

आपलोग अचानक कहां जा रहे हैं? 

बिट्टू रोको इन्हें! 

बेटा कुछ बोलता इससे पहले रिया बोली-” पिताजी इन्हें जाने दीजिये ,मेहमानों के रहने पर हम अपनी छोटी की देखभाल सही से नहीं कर पायेंगे। “

स्वरचित एंव मौलिक 

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 

मुजफ्फरपुर,बिहार

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