अतिथि तुम कब जाओगे

चांदनी अपने भाई बहनों में सबसे छोटी थी,  मां बचपन में ही गुजर गई थी, चांदनी को  ठीक से याद भी नहीं  की मां कैसी दिखती थी, मां की जगह पर चांदनी की बड़ी बहन कुसुम का प्यार मिला और  साथ ही पिता और भाइयों का प्यार मिला लेकिन वह मां की प्यार से मरहूम रही। 

चांदनी का सपना था कि वह उसी घर में शादी करेगी जहां पर उसकी सासू मां हो क्योंकि वह मां के रूप में अपने सासू मां का प्यार पाना चाहती थी। चांदनी पढ़ाई में शुरू से ही अव्वल आती थी और वह बड़ी होकर  सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहती थी।  12वीं पास के बाद उसने बी टेक  कंप्लीट करके एक मल्टीनेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गई थी। समय के साथ चांदनी के घर में सब की शादी हो गई थी घर में दो-दो भाभी आ गई थी।  बहन कुसुम की भी शादी हो गई थी। इधर चांदनी के लिए भी चांदनी के पापा ने लड़के की खोजबीन शुरू कर दी थी। लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था चांदनी को अपनी कंपनी में ही एक सिद्धार्थ नामक लड़के से प्यार हो गया और वह उसी से शादी करना चाहती थी। एक  दिन घर में रात को जब सब घरवाले  डिनर पर बैठे हुए थे तभी चांदनी के पापा  ने कहा,” भाई मैं तो चांदनी के लिए लड़का खोजते खोजते परेशान हो गया हूँ , मुझे इसके लायक कोई लड़का दिख ही नहीं रहा है, चांदनी अगर तुमने  कोई पसंद किया है तो तुम ही बता दो हम उसके मां-बाप से बात कर लेंगे।”



अगले दिन चांदनी ने अपने भाभी को सिद्धार्थ के बारे में बताया कि वह अपने ऑफिस में ही एक सिद्धार्थ नामक लड़के से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है। चांदनी की भाभी ने यह बात चांदनी के पापा से बताया।  चांदनी के पापा ने बोला कि चांदनी से बोलो कि वह सिद्धार्थ के मां पिता जी का फोन नंबर मुझे मांग कर देगी मैं उनसे बात करूंगा । चांदनी को जब यह बात पता चला तो वह फुले नहीं समा रही थी, वह आज बहुत खुश थी, वह ऑफिस जाकर सबसे पहले सिद्धार्थ से यही बात बताई कि मेरे घरवाले हमारे रिश्ते के लिए राजी हो गए हैं।

 बस अब तुम्हारे घरवाले मान जाए।  बस फटाफट तुम जल्दी से अपने पापा का फोन नंबर मुझे दे दो ताकि मेरे पापा तुम्हारे पापा से हम दोनों के रिश्ते की बात कर ले। चांदनी की बात सुनकर सिद्धार्थ थोड़ी देर चुप रहा और फिर जवाब दिया चांदनी क्या तुम्हें नहीं पता कि मेरे मम्मी पापा तो है नहीं, मेरा पालन-पोषण तो मेरे मामा मामी ने किया है। यह सुनकर कि सिद्धार्थ के  मां पिताजी नहीं है ऐसा लगा जैसे चांदनी के दिल  पर कोई बड़ा सा पत्थर रख दिया हो वह बिल्कुल ही सुन्न  हो गई थी,  चांदनी ने पूछा,” तुमने एक बार भी नहीं बताया कि  तुम्हारे मम्मी पापा नहीं है”।  सिद्धार्थ ने कहा तुमने भी तो कभी नहीं पूछा कि तुम्हारे मम्मी पापा क्या करते हैं या कैसे हैं फिर मै भी नहीं बताया। थोड़ी देर के लिए माहौल बिल्कुल शांत हो गया चांदनी बिल्कुल खामोश हो गई थी क्योंकि उसके सपने जो टूट गए थे।  चांदनी ने बचपन से ही सपना देखा था कि वह वैसे घर में शादी करेगी जहां पर उसकी सासू मां हो वह सासू मां के रूप में अपनी मां का प्यार पाना चाहती थी लेकिन यहां तो कुछ भी वैसा नहीं हुआ लेकिन अपनी सासू मां की चाह मे अपने प्यार को खोना नहीं चाहती थी। 

आखिर में चांदनी को समझौता करना ही पड़ा और कुछ दिनों में ही चांदनी और सिद्धार्थ पति-पत्नी बन गए थे। समय का चक्र चलता रहा चांदनी धीरे धीरे दो बच्चों की मां बन  गई थी।   सिद्धार्थ और चांदनी ने मिलकर अपना छोटा सा स्टार्टअप शुरू कर लिया था। इधर सिद्धार्थ के मामा भी गुजर चुके थे मामी अकेले रह गई थी सिद्धार्थ के ममेरे भाई राकेश ने अपनी मां को अपने पास ले गया, लेकिन एक महीने में ही उन्हें वहां से वापस गांव भेज दिया।  सिद्धार्थ को जब यह बात पता चला तो उससे रहा नहीं गया क्योंकि सिद्धार्थ को पाल-पोष कर बड़ा करने में उसके मामा मामी का ही हाथ था ।  आज वह इस जगह पर है तो वह अपने मामा मामी के कारण ही है। अगले दिन सिद्धार्थ ने अपनी पत्नी चांदनी से कहा कि मेरा मन है कि मामी को हम लोग अपने साथ ही रखें, वह अकेले गांव में रहकर क्या करेंगी पहले मामा थे तो दोनों का मन लग जाता था। चांदनी ने एक पल में ही हां कह दी क्योंकि उसे तो बचपन से ही इच्क्षा थी कि उसे मां के रूप में कोई मिले।  सिद्धार्थ अगले ही दिन सुबह की ट्रेन पकड़कर ग्वालियर गया और वहां से अपनी मामी को वापस दिल्ली लेकर आ गया। 



सिद्धार्थ की मामी दो-चार दिन में ही सिद्धार्थ के परिवार के साथ घुलमिल गई थी, सिद्धार्थ के बच्चे को भी दादी मिल गई थी। वो लोग सिद्धार्थ के मामी के साथ खूब खेलते थे, शाम को उनको लेकर पार्क घूमने भी जाना  शुरू कर दिया था। चांदनी जब ऑफिस से शाम को घर आती तो मामी चांदनी के बालों में नारियल का तेल लगाती थी, तेल लगाने से चांदनी को ऐसा लगता था कि पूरे दिन भर का तनाव एक पल में गायब हो चुका है। चांदनी को लगने लगा था अब उसका परिवार पूरा हो गया है जिसकी कमी वर्षों से खल रही थी। संडे का दिन था और संडे के दिन चांदनी, सिद्धार्थ और बच्चे सुबह देर से सोकर उठते थे लेकिन मामी ठहरी गांव की रहने वाली वह तो सूरज निकलते ही बिस्तर छोड़ देती थी उन्होंने देखा कि सब सोए हुए हैं तो सोचा नाश्ता मै  ही बना लेती हूँ। मामी जब किचन में गई तो किचन का हाल देख कर दंग रह गई किचन में झाले पड़े हुए थे सारे किचेन के डब्बे बिखरे पड़े थे ऐसा लगता था यह किचन नहीं एक कबाड़ी वाली की दुकान हो। चांदनी भी क्या करती सुबह जल्दी-जल्दी बच्चों को स्कूल भेजना होता था फिर अपना नाश्ता तैयार करके ऑफिस भी जाना होता है, एक संडे मिलता था तो जितना साफ सफाई करना होता था कर लेती थी सिद्धार्थ ने तो कई बार बोला था कि एक नौकरानी रख लेते हैं, लेकिन चांदनी मना कर देती थी कि हमारे घर में काम ही कितना है जो नौकरानी रखा जाए। लेकिन मामी को इस तरह की गंदगी बिल्कुल ही पसंद नहीं थी

वह अपने घर में हर चीज सलीके से रखती थी।  जब चांदनी सो कर उठी तो मामी ने चांदनी को अपने बेटी की तरह डांटा चांदनी यह किचन का क्या हाल बना रखा है मैंने सोचा कि तुम लोग जब तक सो कर उठोगे तब तक नाश्ता बना देती हूं लेकिन मैं जब किचन में गई किचन  का हाल देखकर  दंग रह गई।  ऐसे कोई रहता है भला हमारे वेद शास्त्रों में लिखा है कि जिस घर में साफ सफाई होती है रसोई साफ होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है। चांदनी ने दबी आवाज मे कहा मामी जी क्या करें टाइम ही कहां मिलता है जो साफ सफाई करें। 

मामी जी ने कहा चलो जल्दी से तुम लोग नाश्ता कर लो और आज हम दोनों सास बहू मिलकर किचन की सफाई करेंगे।  लेकिन चांदनी तो आज मूवी देखने जाने का प्लान बनाई हुई थी पर वह मामी की बातों को ठुकरा भी नहीं सकती थी। आखिर में चांदनी ने मूवी  जाना  कैंसिल कर दिया और मामी के साथ मिलकर पूरे किचन की सफाई करी। चांदनी पूरे सप्ताह के कपड़े भी संडे को ही या छुट्टियों के दिन ही धोती  थी,  यह देखकर भी मामी जी बोली कोई ऐसे कपड़े जमा करता है इसे रोज धो क्यों नहीं देती बच्चों के अलमारी भी अस्त-व्यस्त

 है सारे कपड़े बिखरे हुए हैं। मामी जी किसी ना किसी बात पर चांदनी को टोकती रहती थीं। धीरे धीरे चांदनी को मामी नापसंद आने लगी क्योंकि चांदनी को अपने जीवन में रोका टोकी बिलकुल पसंद नहीं था, वह एक स्वतंत्र जीवन जीने वाली लड़की थी, अपने जीवन को अपने शर्तों पर जीती थी, कोई उसके मामले में दखल अंदाजी करें यह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी । अब तो वह यही सोचने लगी कि मामी जी कब यहां से जाएं। धीरे-धीरे चांदनी मामी से बात करना भी कम कर दिया था ऑफिस से आते ही अपने बच्चों को लेकर अपने कमरे में चली जाती थी और दरवाजा बंद कर लेती थी इधर मामी अकेले रह जाती थी। 



 मामी को भी इस  बात  का एहसास होने लगा था कि चांदनी अब उनको इग्नोर करने लगी है पहले की तरह ना बच्चों से बात करने देती है  ना खुद भी बात करती है। मामी करे तो क्या करें जब खुद के बेटे और बहू ने गांव पहुंचा दिया था तो यह तो भांजा और भांजी है इन से क्या शिकायत।

 मामी को पता था सिद्धार्थ उनसे बहुत प्यार करता है और वह नहीं चाहती थी कि सिद्धार्थ से यह सब बात कह कर उसके परिवार में आपसी विवाद हो उन्हें पता था कि अगर मैं सिद्धार्थ से कुछ भी कहूंगी तो सिद्धार्थ मेरे लिए जान दे देगा लेकिन मुझे जाने नहीं देगा उन्होंने सुबह-सुबह ही एक चिट्ठी टेबल पर रख कर घर से अपने गांव के लिए निकल गई। सुबह सबसे पहले सो कर उठने के  बाद सिद्धार्थ अपने मामी के कमरे में जाता था और मामी के पैर छूकर प्रणाम करता था,आज भी वह मामी के कमरे में गया तो देखा कि मामी अपने बेड पर नहीं है, उसे लगा की बालकनी में होंगी, लेकिन बालकनी में भी मामी  जब नहीं दिखाई दी  तो सिद्धार्थ परेशान हो गया।  देखा घर का दरवाजा खुला हुआ है तभी उसकी नजर टेबल पर पड़ी एक कागज के  टुकड़े पर पड़ी उसमें कुछ लिखा हुआ था सिद्धार्थ ने जब वह चिट्ठी पढ़ा तो उसके होश ही घूम गए उसमें लिखा हुआ था सिद्धार्थ मैं अब अपने गांव जा रही हूं बहुत दिन यहां पर रह लिया तुम लोगों का प्यार बहुत मिला लेकिन मुझ में हिम्मत नहीं थी कि मैं तुमसे कह कर जाऊं, मुझे पता था कि मैं तुमसे कहूंगी तो तुम मुझे जाने नहीं दोगे, इसीलिए मैं गांव जा रही हूं तुम सब खुश रहो यही मेरा आशीर्वाद है तुम्हारी मामी सिद्धार्थ परेशान हो गया कि आखिर मामी ने इतना बड़ा फैसला क्यों लिया  वह घर छोड़कर क्यों गई अगर उनको जाना ही था तो मुझसे बोलती मैं उन्हें पहुंचा देता और आखिर वह गांव जाकर भी क्या करेंगी वहां भी तो कोई नहीं है। सिद्धार्थ को कुछ समझ नहीं आ रहा था, वह तुरंत अपने बेडरूम में आया और अपनी पत्नी को जगा कर पूछा तुम्हें पता है मामी  घर छोड़ कर चली गई है, तुमने कुछ मामी को बोला है क्या ? जब चांदनी को यह बात पता चला तो चांदनी भी अवाक  सी हो गई क्योंकि चांदनी को भी अहसास नहीं था कि मामी ऐसे घर छोड़कर चली जाएंगी। चांदनी, सिद्धार्थ के गले लग कर रोने लगी और सब कुछ बता दिया सिद्धार्थ मैंने उन्हें कुछ बोला तो नहीं था लेकिन वह हर बात में टोकना  शुरू कर दिया था, तुम्हारा किचन ऐसा है, कपड़े ऐसे क्यों रखती हो, तो  मुझे उनसे चिड़ होने लगी थी, मैंने उनसे बात करना कम कर दिया था और बस यही और कोई बात नहीं था मैंने उन्हें कभी कुछ कहा नहीं था।

सिद्धार्थ ने चांदनी को बहुत डांटा और कहा कि सही में इंसान के पास जो चीज नहीं होती है, वह उसके बारे में सोचता है जब वह उसके पास आ जाती है तो उसकी कद्र नहीं करता है तुम्हें बचपन से एक मां चाहिए थी जब माँ तुम्हारे पास आई तो तुम्हें से चिड़ हो ने लगी  क्या तुम्हारी अपनी   माँ तुम्हें कुछ टोकती तो क्या बात करना बंद कर देती, सुनो  बचपन से ही अपनी मामी में अपनी मां को देखा हूँ । चांदनी बोली सिद्धार्थ अब क्या करें, चांदनी की लड़की बोली हां पापा जल्दी से चलते हैं दादी को घर ले आते हैं दादी स्टेशन ही तो गई होंगी। सिद्धार्थ ने कहा हां सह  कह रही हो सिद्धार्थ ने जल्दी से कार निकाला और बच्चों और बीवी के साथ स्टेशन की तरफ चल दिया जब नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे देखा, वेटिंग रूम में उसकी मामी बैठी हुई थी। चांदनी मामी के पैरों में गिर पड़ी और रोने लगी मामी जी मुझे माफ कर दीजिए मुझे नहीं पता था कि आप ऐसे घर छोड़कर चली जाएंगी हमें पता है कि आप जो भी कहती थी वह हमारे भले के लिए ही कहती थी लेकिन हमने उसका गलत मतलब निकाल लिया।  मुझे माफ कर दीजिए मामी जी।  चलिए अब आप आज के बाद कभी नहीं घर छोड़कर जाएंगी। मामी को भी चांदनी में अपनी बेटी नजर आने लगी थी और मामी चांदनी और सिद्धार्थ के साथ घर वापस लौट चुकी थी।

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